Tuesday 8 October 2013

मैं यहाँ हूँ - पंकज त्रिवेदी


मैं यहाँ हूँ
आओ तुम भी ...

मेरी तन्हाई से तुम
अपनी तन्हाई को भी
मिलने दो |

मैं यहाँ हूँ
आओ तुम भी...

सदियों का अकल मौन
तुम्हारे जीवन की रिक्तता
मिलें हम आओ |

मैं यहाँ हूँ
आओ तुम भी...

कहने को कुछ नहीं है
तुम कहाँ कभी बोल पाई हो
मौन को बोलने दो |

मैं यहाँ हूँ
आओ तुम भी...

बडबडाता हूँ हरदम यूंही
तन्हाई में तेरी यादों के सहारे
तेरे अक्स को सजाने दो |

***

Wednesday 2 October 2013

मेरी माँ !

माँ | माँ के लिखना मेरे लिए हमेशा कठिन रहा है| परसों ही मित्र अवनीश सिंह चौहान का फोन आया | कुछ लिखें | मैंने हामीं भर दी मगर क्या लिखूंगा यह सोचा नहीं | सोचना भी क्या? मैंने हमेशा ज़िंदगी से लडती हुई माँ को देखा | एक जुझारूपन से |

मेरे नानाजी गुजराती थे मगर वो वाराणसी में स्थित थे| माँ का जन्म भी वहीं हुआ–वाराणसी में | समय था अखंड हिन्दुस्तान का | फिर तो नानाजी अपने कामकाज से लाहोर, करांची, बिहार के भागलपुर, मोतिहारी... न जाने कहाँ कहाँ रहे | मेरी माँ को भाई न था | तीन बहने ही थीं | सबसे बड़ी सविता, मझली मेरी माँ – शशिकला और सबसे छोटी थी शकुंतला | छोटी मौसी के जन्म के बाद ही मेरी नानीजी का देहांत हो गया था | जब देश का बंटवारा हुआ तो नानाजी लाहोर में थे | इतिहास गवाह है कि बंटवारे के समय आज के पाकिस्तान से हिंदुओं को किस तरह निकाला गया था | नानाजी भी तीनों बेटियों को लेकर ट्रेन से निकल पड़े थे अपने हिंदुस्तान की ओर | 

मुझे याद आती है भीष्म साहनी की वो कहानी- अमृतसर आ गया है’ | जिसमें भी वोही कहानी है जो बंटवारे के समय ट्रेन से वापस लौटते हुए यात्रियों की दर्दनाक दास्ताँ | पढते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे, क्यूंकि माँ ने हमें बचपन में जो बातें बताई थी वोही घटनाएँ | नानाजी बेटियों को लेकर हिंदुस्तान लौट रहे थे तब छोटी मौसी शकुंतला की उम्र होगी करीब चा-पाँच साल | उन्हें तरस थी| नानाजी ने बड़ी मौसी सविता से कहा; सामने वो प्याऊ है वहाँ से पानी भर ले आ | मगर उन्हें डर लग रहा था | हिंदू-मुस्लिम की दुश्मनी का जो माहौल था, उसका डरना स्वाभाविक था | नानाजी अपना थोडा सा कीमती सामन बचाकर लाए थे | उसकी हिफाज़त और दो छोटी बेटियों को संभालकर बैठे थे | मौसी नहीं गई तो माँ ने कहा; बाबू जी, मैं शकुंतला को लेकर पानी पिलाकर आई, आप चिंता न करें |
 
माँ भी तो इतनी बड़ी कहाँ थी ! नानाजी भी ट्रेन के डिब्बे के दरवाजे पे खड़े थे| माँ शकुंतला मौसी को लेकर प्याऊ तक पहुँची| उसी समय एक बड़ा सा झुलुस – मारो, कापो ... कोई बच न पाएं – स्टेशन पर आतंक मचाने लगा | ट्रेन तुरंत शुरू कर दी गई| फिर भी माँ ने भीड़ के बीच से शकुंतला मौसी को पानी तो पिलाया मगर ट्रेन में कैसे चढती? नानाजी सविता मौसी का हाथ पकडकर ट्रेन के दरवाजे पे खड़े भी न रह पाएं | अन्य हिंदू भी ट्रेन में चढाने लगे, जिन्हें जान बचानी थी | माँ शकुंतला मौसी का हाथ पकडकर दौडने लगी.. मगर छोटी मौसी कितना दौड पाती ? ...... और माँ ने ट्रेन का डिब्बे से लगे हेंडल को पकड़ लिया था और उधर .... शकुंतला मौसी का हाथ छूट गया.... ओह ! फिर हमारी प्यारी सी शकुन्तला मौसी को हमने हमेशा तसवीर में ही देखी | 

हिंदुस्तान में आते ही नानाजी अपनी बहन के घर आएं अहमदाबाद में | जहाँ उसका ससुराल था | अहमादाबाद में कर्फ्यू था | मुश्किल से घर पहुंचे मगर बहन के ससुराल में कितने दिन रहते? वो लौट आएं हमारे सुरेंद्रनगर जिले में| 

माँ जन्म से ही हिन्दी भाषी थी | सबसे बड़ी कठिनाई थी भाषा की| माँ की शादि हुई | छोटा से गाँव में – जहाँ उनके लिए काम था खेतों में जाना, मज़दूरी करना, चिखुरन करना, घर में रहे पशुओं को दोहना, उसे चारा डालना, कूएँ याँ तालाब से पानी लाना वो भी सर पे गगरी रखकर..| माँ ने यह सब देखा ही न था तो काम कैसे करती? उसपे गाँव की अनपढ़ महिलाओं की हसीं-मज़ाक को सहना| ऐसा लगता था कि माँ जीते जी नर्क में आ गई | माँ का स्वभाव था, सहन करना, हिम्मत से हर हाल में अडिग रहना | वर्ना वाराणसी में तो वो ‘बोर्न विद सिल्वर स्पून’ थी | माँ वो सारा काम सीख गई| हम तीन भाई और एक बहन | माँ ने अपनी सास के साथ खेती को संभाला और सूत से पैसे लाकर पिताजी को पीटीसी की पढाई करवाई | और फिर पिताजी नज़दीक के गाँव में शिक्षक बन गएं | 

मुझे याद है – तब भी माँ गोबर और मिट्टी से अपने घर की दीवारों पर लिपाई करती | वो बांस की सीधी पर चढ जाती और हम भाई-बहन गोबर-मिट्टी के गोले बनाकर उन तक पहुंचाते | क्या मेहनत थी और क्या माँ का स्नेह ! उनके आंसूओं से बना वो गोबर-मिट्टी का घर 2001  में विनाशक भूकंप में गिर गया था | जो हम तीनों भाईयों ने मिलकर नया बनाया है, सिर्फ माँ-बाबूजी की स्मृति के लिए, अपने गाँव की मिट्टी का ऋण अदा करने और हमारे बचपन के संस्मरण को संस्कार के रूप में हमारे बच्चों में आरोपण करने के लिए !

गरीबी और मज़दूरी के बीच हमारी मजबूरी भी पल रही थी | हमने कभी उतने पैसे नहीं देखे थे कि हम माँ को कभी उसी वाराणसी की गलियों में ले जाएँ, जहाँ उसका बचपन बीता था | उस गंगाघाट पे ले जाएँ जहाँ गंगा आरती के दर्शन के लिए वो तरसती थी | वो हमेशा कहती; हमारे घर का पिछला दरवाज़ा गंगाघाट पर ही था... |
 
आज हम तीनों भाईयों के पास क्या कुछ नहीं हैं? बहन अपने ससुराल में खुश हैं | हमारे पास सबकुछ होते हुए भी कुछ अफसोस, दुःख, यातना भी हैं, जिसे हम कभी भूलेंगे नहीं | क्यूंकि वो दर्द का पिटारा ही हमारे जीवन की नींव है | सबकुछ होते हुए भी हमारे बाबू जी नहीं है और न हमारी माँ ! 

Tuesday 1 October 2013

मेरा पत्र - मोहनदास करमचंद गांधी

मेरे देश के भाईयों और बहनों,
नमस्कार
मैं आपका दास, मोहनदास करमचंद गांधी | जिसे आप सभी ने प्यार से ‘बापू’ कहा, ‘महात्मा’ कहा | मगर मैं आज आप सभी को अपने राष्ट्र के हित के लिए कुछ कहना चाहता हूँ | आझादी के बाद देश ने विविध क्षेत्रों में बहुत तरक्की की है, इस बात को मैं जरूर मानता हूँ | विज्ञान और टेकनोलोजी के साथ देश में तरक्की का ग्राफ निरन्तर बढता रहा है| मगर देश के सामने कईं मुश्किलें हैं और चुनौतियाँ हैं |  यूं कहें कि देश में सबकुछ होते हुए भी हम इंसानियत को भूल रहे हैं | इसलिए हमारी सारी मुश्किलों की जड़ इसी में समाहित है| 

देश आज राम का नाम भूल गया है और राम के नाम राजनीति करने वालों का तांता लगा है | मैं था तब की बात ओर थी मगर मेरे जाने के बाद मेरे विचार और मेरे नाम का उपयोग सभी ने अपनी ज़रूरतों के मुताबिक किया है | मैं तो देश का सेवक रहा हूँ और आप सभी का दास | मेरे विचार आज किसी भी राजनीतिक दलों के काम आता हैं तो वो खुशी से उन विचारों को लेकर चलें | मुझे विश्वास है कि अगर मेरे विचारों पर ही अमल किया जाएगा तो इस देश को किसी भी तरह का नुकसान तो नहीं होगा |  आझादी के बाद ही मैंने तुरंत कहा था कि अब कांग्रेस का कार्य सम्पन्न हो गया है | कांग्रेस को बिखेरने का समय आ गया है | मेरे जीते जी यह नहीं हुआ और आज भी कांग्रेस राजनीतिक दल के रूप में कार्य कर रहा है मगर मैं उनमें कहीं भी नहीं हूँ |  

सरदार हम सब के ‘सरदार’ थे, मैं खुद उनसे प्रभावित था | उन्हों ने देश के लिए जो कार्य किया और अपने आप को ‘लोह पुरुष’ के रूप में साबित किया मगर उन्हों ने कभी देश सेवा का दावा नहीं किया | डॉ. आम्बेडकरने उस समय के अनुसार देश के हालातों को मद्देनज़र जो संविधान बनाया वो आज भी प्रस्तुत है | मैं ऐसा कतई नहीं कहा था कि आज के बदलते दौर में देश हित के लिए किसी छोटी सी कलम से  संविधान में शामिल करने की गुंजाईश नहीं है | इसका मतलब यह नहीं कि पूरा संविधान ही बदल दिया जाएं | हमारे संविधान के समकक्ष दुनिया के किसी भी देश का कायदा-क़ानून नहीं हैं | यह मिल का पत्थर है |  

आजकल कांग्रेस देश की सर्वोच्च सत्ता पर है | आनेवाले चुनाव को लेकर देश में जो गर्माहट है उससे भी ज्यादा देश के नेताओं के खिलाफ दर्ज़ भ्रष्टाचार एवं अपराधिक केस के लिए गर्माहट  हैं | आज की स्थित यह है कि कोई  भी पक्ष यह साबित नहीं कर सकता कि उनके साथ एक भी नेता ऐसा नहीं जो भ्रष्टाचार और अपराधिक मामले में शामिल नहीं है | इसका सबसे बड़ा कारण टेकनोलोजी का दुरुपयोग है | मैं टेकनोलोजी का विरोधी नहीं हूँ मगर उसका विवेकपूर्ण उपयोग करने और कराने में हम विफल रहे हैं | चीन अपने देश की जानकारी विश्व को नहीं होने देता | इंटरनेट के माध्यम से हमने देश को दुनिया के सामने इस कदर खुला कर दिया कि हमारे अंदरूनी मामले भी विश्व की चौपाल पर नौटंकी की तरह पेश होने लगे |  

हमें पहले से यह अनुभव है कि हमारे पडौसी देशों पर भरोसा करना मूर्खता है | आज मुझे बेबाक होकर कहना पड़ रहा है कि संविधान के अनुसार देश में अनेक राजनीतिक दलों का जो गठन हुआ है और उन छोटे छोटे दलों के सहारे से बनती कोई भी सरकार उनके सामने घुटने टेकने को मजबूर हो जाती है | यही कारण से अपनी सरकार बचाने का हाई कमांड और साथी दलों के दबाव में हमने देश का एक महान अर्थशास्त्री को खो दिया है | राज्यों के मुख्यमंत्रियों के प्रधानमंत्री बनने के सपने और अभिमान प्रदेश तक सीमित न रहकर देश-दुनिया के सामने अपने देश की नाक कटवा रहा है | विपक्ष के साथ सालों से सहयोग देने वाले अचानक उनके खिलाफ होने से विपक्ष बौखला गया है | उनके पास चुनाव लडने के लिए सक्षम चेहरा नहीं है | एक आदमी जो अपने संयम और मति को भ्रष्टता की ओर अग्रेसर करते हुए निर्लज भाषा का प्रयोग कर सकता है वो भी अंतत: मूल कांग्रेसी दिग्गज नेताओं के कुर्ते को पकडकर चलता है |  

नवाज़ शरीफ ने प्रधानमंत्री के बारे में गैरजिम्मेदाराना बयान दिया या नहीं, वो स्पष्ट हुआ नहीं था | ऐसे में उसी मुद्दे को सोश्यल नेटवर्क से उठाकर किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने देश के प्रधानमंत्री की तौहीन कर दी| यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है | नवाज़ शरीफ के कहने से ज्यादा उस मुद्दे से चुनाव का फायदा उठाने का जरुर सोचा होगा मगर यह नहीं सोचा कि आपके शब्दों से दुनिया के सामने यह मुद्दा अहम साबित हुआ | बहार का कोई अपमान करें तो उसे जवाब दे सकते हैं मगर अपने ही अपमान करें तो देश की एकता और अखंडितता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न लगता है | किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री यह कहने लगें कि – “आज मुझे पूरी दुनिया सुन रही है” – यह मात्र विधान नहीं हैं, इस विधान के पीछे ज़बरज्स्त अभिमान की हूंकार है, जो उन्हीं को ले डूबेगी | किसी भी राजनेता के भाषण को सुनने भीड़ का इकठ्ठा होना और उसी भीड़ का उसी नेता के पक्ष में मतदान करना अलग बात है | देश की प्रजा सब देख रही है | सजग है और संभल गई है | सत्तापक्ष के खिलाफ अनगिनत भ्रष्टाचार के आरोप लगे हुए हैं | उनकी नाकामी किसी कहानी के राजकुमार की जादुई छड़ी से ‘राम राज्य’ प्रस्थापित कर सकें ऐसा विश्वास हम नहीं कर सकतें |     

देश में हो रहें बलात्कार, दंगे और भ्रष्टाचार जिस तरह से बढ़ रहा है, ऐसे में हम कभी पडौसी देशों से सलामत नहीं रह सकतें | क्यूंकि जिस घर में एकता न हों और आपसी खींचातानी से फुर्सत न हों ऐसे में पडौसी देश सीमा पर हमारे सैनिकों के सर काट सकते हैं | मैंने अहिंसा का मार्ग जरूर दिखाया था मगर आज का समय और स्थिति के अनुकूल देश हित में लिया गया हर ठोस कदम से मैं सहमत हूँ | मैंने यह तो नहीं किया था कि हम परिवर्तन न करें, तरक्की न करें...!  मैंने हमेशा चाहा कि हमसे किसी को नुकसान न हों, देश की भलाई के लिए कार्य करें और साथ मिलकर आगे बढ़ें | मगर मेरे अनगिनत विचारों का विकृत अर्थघटन कईं नेताओं ने अपनी भलाई के लिए किया है | आज मुझे कहना पड़ेगा कि जो व्यक्ति यह कहता है कि मैं गांधी विचारधारा को मानता हूँ | कम से कम उसे अपने आचरण से यह साबित करना होगा, संगठित होना होगा |  

एक बात स्पष्ट कर दूं – देश में चाहें किसी भी पक्ष का नेता अगले चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनें | उन्हें सत्ता को संभालना आसान नहीं होगा | बिना गठबंधन सरकार बनेगी नहीं और जोडतोड की राजनीति का भविष्य उज्जवल होता नहीं है | आज आप जिस पर आरोप लगा रहे हैं, वोही आरोप अलग शब्दों में आपके सामने भी आएगा |  

आप नवाज़ शरीफ की औकात पर सवाल उठा सकते हैं, मगर इतने सालों से चल रहे आतंक का आका तो नापाक धरती से ही पैदा हुआ है | सत्ता के बावजूद भी कठिन है | अगर आप वादे के अनुसार कुछ कर सकेंगे तो देश की सेवा होगी |  ज्यादा कहने से बेहतर कुछ करने में महारत हांसिल करनी चाहिए | दुनिया का सबसे ऊंचा स्टेच्यू हमारे सरदार का होगा ये जरूर कहें मगर ‘स्टेच्यू ऑफ लिबरटी’ से दुगना कहकर अमरीका को आप जाने-अनजाने में क्यूं छेड़ने का मतलब एक और विरोधी हो न्यौता देना | अमरीका और पाकिस्तान जानता है कि भारत के पास ताकत होने के बावजूद नेताओं-दलों की आपसी लड़ाई, भ्रष्टाचार और अपराध के मामलों में उलझे हुए सभी नेता निर्णय कर नहीं सकते और देश की सेना के हाथ में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है | ऐसे हालत में हर कोई देश भारत पर ऊंगली उठाएगा | अहिंसा का एक ओर अर्थ है – अपनी ताकत होते हुए भी किसी निशस्त्र या निर्बल पर अत्याचार के रूप में हिंसा न करें | मैंने जरूर कहा था कि एक गाल पर कोई थप्पड़ मारें तो दूसरा गाल धरें | मगर हम पर अत्याचार के रूप में कोई हाथ उठाता है तो उसका कडा मुकाबला करना चाहिए | अगर मैं अन्यायों के खिलाफ लडने की हिमायत नहीं रखता तो हमें अंग्रेजों से आझादी नहीं मिलती | देश के अनगिनत लोगों ने इस देश के लिए रक्त बहाया है | हमारे वीर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि और सम्मान देने और देश की एकता-अखंडितता के लिए हमें आपस में प्यार से रहना होगा | विपक्ष का मतलब यही है कि सत्ता पक्ष को जागृत रखना | मतलब यह नहीं कि गालियाँ देकर पवित्र संसद को अपवित्र करना |  

आज के दिन मैं आप सभी से हाथ जोडकर प्रार्थना करता हूँ कि अब भी समय है, संभाल जाओ | भ्रष्टाचार के पैसे हमारे काम नहीं आतें | धर्म के नाम पाखंड रचाने वालों का असर भी हमने देखा है | अपने देश के लिए प्यार और समभाव से जिएं और देश की सुरक्षा के लिए पूरी ताकत से कदम बढ़ाएँ| सत्ता मोह से ज्यादा देशप्रेम के लिए कार्य करें|
                                                               जय हिन्द
                                                       मोहनदास करमचंद गांधी 

(चित्र  : अशोक खांट)